हम उसी से सीखते हैं जिसके प्रति हमारे मन में श्रद्धा होती है। जिस व्यक्ति में हमारी श्रद्धा ही न हो उससे कुछ नहीं सीखा जा सकता।भले ही वह व्यक्ति कितना ही विद्वान क्यों न हो। _अर्चना शर्मा
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@archana67827913 'मुझमे' कही 'छुप' के 'बैठा' है , 'जिसे' ढूंढ़ने 'आये' हो आप | 'मैं' भी 'निकला' हूँ 'ढूंढ़ने' , हाँ !-'उसी' को 'जो' 'बैठा' है 'छुप' 'के' मुझमे | "अनंत "