-- उम्मीदों का गर दीया न होता बुझ जातीं जाने ज़िंदगियाँ कितनी -- अम्बष्ठ
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@soul_reveals 'मुझमे' कही 'छुप' के 'बैठा' है , 'जिसे' ढूंढ़ने 'आये' हो आप | 'मैं' भी 'निकला' हूँ 'ढूंढ़ने' , हाँ !-'उसी' को 'जो' 'बैठा' है 'छुप' 'के' मुझमे | "अनंत "