छन्द-आये जो लक्ष्मण त्यागि सीतहि विकल निज आश्रम गये । बहु भांति रोदन मातुसन कहि सीय दारुण दुख दये । सुनि सहमि मुछिऀत मातु वाणी विकल फणि जिमी मणि गये । तिमि मातु विलपति जानि व्याकुल कौशलहि दुखवशभये॥१०॥
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लक्ष्मणजी जानकी को त्याग कर जब आये, तब व्याकुल होते हुए अपने मंदिर में गये और अनेक प्रकार से माताओं के सामने रोने लगे कि जानकी को बड़ा कष्ट दिया, माता लक्ष्मण की यह वाणी सुनकर ऐसे सहम कर मूर्छित हो गयीं जिस प्रकार साँप की मणि जाती रहने पर वह व्याकुल होता है