कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके। राम लखन सम प्रिय तुलसी के॥ बरनत बरन प्रीति बिलगाती। ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती॥ भावार्थ:- तुलसीदास को "राम" नाम सुनना, बोलना और स्मरण करना श्रीराम और लक्ष्मण के समान ही प्यारा है। "राम" नाम का वर्णन करने में अर्थ और फल में भिन्नता जान पड़ती है, लेकिन यह जीव और ब्रह्म को समान भाव से सदैव एक रूप-रस में रखने वाला है। जय रघुनंदन " जय श्री राम " ❣️
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