मुड़ सकती है नदी,धार तोड़ना चाहिए विष वृक्ष पर प्रहार होना चाहिए। अपनी जड़ो को काट,आयु रहा न पेड़ का बात आगे की है,अब तो जुड़ना चाहिए। यहाँ की माटी में भेद उपजा कभी नहीं व्याख्या मनमानी है,गुलामी टूटना चाहिए। ध्वज पताका दशों दिशा लहड़ा रही बयार इसकी कोने कोने पहुँचना चाहिए।
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